श्लोक- सुभाषित
श्रीमद् भगवद्गीता (कर्मयोग) ।।श्लोक।। श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात। स्वधर्मेनिधनं श्रेय:परधर्मो भयावह:।। अध्याय तिसरा, श्लोक क्रमांक 35 ।।भावार्थ।। मनुष्य ‘कर्म-विना’ एकक्षणही राहू …
श्रीमद् भगवद्गीता (कर्मयोग) ।।श्लोक।। श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात। स्वधर्मेनिधनं श्रेय:परधर्मो भयावह:।। अध्याय तिसरा, श्लोक क्रमांक 35 ।।भावार्थ।। मनुष्य ‘कर्म-विना’ एकक्षणही राहू …
।।श्लोक।। ।। साहित्यसंगित् कला विहीन:l साक्षात्पशु: पुच्छविषाणहीन:।। तृणं न खाद्न्नपि जीवमान:। तद् भागें परंम पशूनाम्।। भावार्थ: ज्या व्यक्तीला साहित्यात, संगीतात …
श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात।स्वधर्मेनिधनं श्रेय:परधर्मो भयावह:।। अध्याय तिसरा, श्लोक क्रमांक 35 ।।भावार्थ।। मनुष्य ‘कर्म-विना’ एकक्षणही राहू शकत नाही. मग ते कोणत्याही …
श्लोक ।। साहित्यसंगित् कला विहीन:l साक्षात्पशु: पुच्छविषाणहीन:।।तृणं न खाद्न्नपि जीवमान:। तद् भागें परंम पशूनाम्।। भावार्थ ज्या व्यक्तीला साहित्यात, संगीतात तसेच कलेमध्ये निरसता …
श्लोक धनानि भूमौ पशवश्र्च गोष्ठे भार्या गृहद्वारि जन: श्मशाने।देशद्रोहियों परलोकमागे॔ कमो॔नुगो गुच्छों जीव एक:ll भावार्थ धन फक्त भूमी वरच ,पशु …
श्लोक मा करु धनजनयौवनगर्वं हरति निमेषात्काल: सर्वम्।मायामयमिदाखिलं हित्वा ब्रह्मपदं त्वं प्रविश विदित्वा।। भावार्थ धन,जन आणि यौवन यावर कधीच घमंड करू …
श्लोक धनानि भूमौ पशवश्र्च गोष्ठे भार्या गृहद्वारि जन: श्मशाने।देशद्रोहियों परलोकमागे॔ कमो॔नुगो गुच्छों जीव एक: ll भावार्थ धन फक्त भूमी वरच …