श्लोक- सुभाषित
श्रीमद् भगवद्गीता (कर्मयोग) ।।श्लोक।। श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात। स्वधर्मेनिधनं श्रेय:परधर्मो भयावह:।। अध्याय तिसरा, श्लोक क्रमांक 35 ।।भावार्थ।। मनुष्य ‘कर्म-विना’ एकक्षणही राहू …
श्रीमद् भगवद्गीता (कर्मयोग) ।।श्लोक।। श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात। स्वधर्मेनिधनं श्रेय:परधर्मो भयावह:।। अध्याय तिसरा, श्लोक क्रमांक 35 ।।भावार्थ।। मनुष्य ‘कर्म-विना’ एकक्षणही राहू …
।।श्लोक।। ।। साहित्यसंगित् कला विहीन:l साक्षात्पशु: पुच्छविषाणहीन:।। तृणं न खाद्न्नपि जीवमान:। तद् भागें परंम पशूनाम्।। भावार्थ: ज्या व्यक्तीला साहित्यात, संगीतात …
१६ संस्कार काय आहेत? – सोपी आणि स्पष्ट माहिती “संस्कार” या शब्दाला जीवनात फार महत्त्व आहे.संस्कार म्हणजे सवयी. सवयी …
आओ फिर से दिया जलाएँ भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह निचोड़ेंबुझी हुई बाती सुलगाएँ। …
चाहत के रंगीन धागे, आज फिर से बुन लिए।मोहब्बत की स्याही भरे, लफ़्ज़ों के फूल चुन लिए।एहसास के कशीदों से, …
माईंड फुलनेस परिभाषा और इतिहास माईंडफुलनेस का अर्थ है वर्तमान क्षण में पूर्ण जागरूकता के साथ उपस्थित राहना और बिना …