Chaitra Navratri (चैत्र नवरात्री)

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चैत्र नवरात्री

हिंदू धर्म मे “देवीभक्ती” का या देवी भक्ती की महिमा अपरंपार है। चैत्र महा के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि सुरू होती है। यह नुतन वर्ष की भी सुरुवात है। हिंदू धर्म मे “दैवीशक्ती” “दैवीकृपा”  के लिए देवीयों की पूजा, प्रार्थना, अर्चना, भक्ती, साधना करते है। इससे जीवन में सुख, शांती और समृद्धी आती है। नवरात्री मे भक्त लोग पुरे मन और श्रद्धा के साथ अपने अपनी कुलदेवी, दुर्गादेवी, महादेवी कालीमाता की  दिनभर  श्रद्धासे  पूजा, अर्चाना करते है। देवी भक्ती मे साधना का महत्व बहुत है। माॅ की साधना  थोडी कठीण होती है। क्यूकी खुद मा पार्वती ने  तप किया था इसलिये उसे तपस्विनी, ब्रह्मचारी कहते है।

पौराणिक मान्यता नुसार दुर्ग नाम का एक भयंकर अत्याचारी राक्षस था। दुर्ग का अर्थ दुर्गम। मतलब उसका वध करना बहुत कठीण और कठोर काम था।  माॅ दुर्गा ने राक्षससे लढाई की, इसलिये उनका नाम दुर्गा पडा है। और एक भयंकर महिषासुर नाम का राक्षस था। उसके खिलाफ युद्ध माॅ दुर्गा ने नऊदिन तक लढा और उस महिषासुर को पराजित करके उसको मार डाला। इसलिये माॅ दुर्गा का रूप सुंदर, कोमल,होकर भी कठोर और स्थिरमुद्रा वाला है। माॅ हमेशा फोटो और मूर्ती मे शेर या सिंह पर सवार दिखती है। मतलब व सदैव वाहन पर विराजमान रहकर, किसी दुष्ट का शिघ्रता से तुरंत विनाश के लिये तयार रहती है। माना जाता है की चैत्र नवरात्री मे प्रत्येक नववर्ष मे मा का वाहन अलग अलग रहता है।20 25 मे माॅ का वाहन हाथी है।

माॅ दुर्गा का वाहन

इस चैत्र नवरात्री मे माता हाथी पर सवार होकर आगमन करेगी। भागवत पुराण के अनुसार माता का हाथि पर सवार होकर आना अत्यंत शुभ माना जाता है। हाथि का मतलब  समृद्धी, शांती और आर्थिक विकास तथा प्राकृतिक स्वास्थ्य का प्रतीक है।

इस बार मा दुर्गा  हत्ती पर सवार होकर आ रही है। हाथी की सवारी शुभ संकेत माना जाता है। हाथी शांती और शक्ति का प्रतीक है।”श्रीमहालक्ष्मी” जी को भी गजहाथी  बहुत पसंद है। इसीलिए इस साल माॅ दुर्गा का हाथी पर आना और हाथी पर ही जाना दोनोही शुभ संकेत माने जाते है। हिंदू धर्मा मे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवरात्री मे “आगमन” और “समापन” के दिन के लिये माता का वाहन निर्धारित किया जाता है। 2025 साल की चैत्र नवरात्री 30 मार्च रविवार से शुरू  हो कर सोमवार 6 एप्रिल को समाप्त हो जाएगी। चैत्र नवमी  के दिन, राम नवमी आती है। इस दिन प्रभू राम जी का जन्म उत्सव मनाया जाता है।

चैत्र नवरात्रि की  तिथि इस प्रकार है

प्रतिपदा: पहिला दिन- रविवार, 30 मार्च 2025. इस दिन कलश स्थापना करते है। माता का “शैलपुत्री”रूप पूजा जाता है।

द्वितीया: दुसरा दिन  – सोमवार 31 मार्च 2025 इस दिन माता का ब्रह्मचारी रूप मे पूजा की जाती है। यह तपस्विनी का,ब्रह्मचारीनी का रूप है।                                          

तृतीया: तिसरा दिन- मंगलवार 1 एप्रिल 2025 इस दिन माता का चंद्र घंटा के रूप मे पूजा और साधना की जाती है।

चतुर्थी: चौथा दिन-  बुधवार   2 एप्रिल 2025  इस दिन माता का कुष्मांडा रूप मे पूजा, अर्चना की जाती है

पंचमी: पाचवा दिन- गुरुवार  3 एप्रिल 2025 इस दिन माता का स्कंद माता के रूप मे पूजा, अर्चना, प्रार्थना की जाती है।

षष्ठी:  छाटवा दिन- शुक्रवार  4 एप्रिल 2025 इस दिन माता कात्यायनी के रूप मे पूजा और आराधना के जाती है।

सप्तमी: सातवादिन- शनिवार 5 एप्रिल 2025 इस दिन माता का महाकाली ग्रुप मे या फिर काल रात्री के रूप मे पूजा करते है।                                         

अष्टमी: आठवा दिन- रविवार 6 एप्रिल 2025 इस दिन माता का मांमहागौरी के रूप आराधना करते है।

नवमी:  नववा दिन- सोमवार 7 एप्रिल 2025 इस दिन माता का सिद्धी दात्री के रूप मे पूजा की जाती है ये दिन माता के। समापन का दिन होता है।

कलश स्थापना मुहूर्त:

चैत्र नवरात्री मे बहुत सारे घरमे और मंदिर मे कलश स्थापना करते है। हिंदू पंचांग नुसार इसका एक शुभ “मुहरत” रहता है।

30 मार्च 2025 का शुभ मुहूर्त सुबह 6:13 मिनिट से लेकर सुबह 10: 22 तक रहेगा। इसदिन अभिजीतमुहूर्त दोपहर 12:01से 12:50 बजे तक रहेगा। इस समय भी कलश स्थापना करना शुभ मानते है।

कलश 

एक टोकरी मे शुद्ध काली मिट्टी भरले। उस पर एक मिट्टी का कलश या तांबे का कलश रखे। कलश मे गंगाजल, लौग, हलदी की गाठ,एक सुपारी, दुर्वा, एक लाल फुल, एक रुपये का सिक्का डाल दे। अब कलश को आम के पत्तो से सजाये।   स्वस्तिक का चिन्ह बना ले।  नारियल और कलश को कलावा लपेटे । अगर आपके पास माॅ दुर्गा की मुर्ती हो तो एक थाली मे चावल के उपर उन्हे विराजमान करे। और फिर चंदन, फुल, सिंदूर, कुंकुम, अक्षद लगाये।  माॅ के लिये दररोज नऊ दिन तक मीठे पदार्थ का भोग लगाये। हो सके तो घर की  गृहिणी खुद भोग आपने हाथो से बनाये। और घी का दीपक जलाये। अब थोडी देर मंत्र उच्चारण करे। हो सके तो 108 बार जप करे। दुर्गा सप्तशती या कनकधारा स्तोत्र का पाठ करे। पाठ संपूर्ण होने पर माॅ से आशीर्वाद की प्रार्थना करे।


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