चाहत के रंगीन धागे

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चाहत के रंगीन धागे,
आज फिर से बुन लिए।
मोहब्बत की स्याही भरे,
लफ़्ज़ों के फूल चुन लिए।
एहसास के कशीदों से,
ग़ज़ल के बोल गढ़ दिए।
कलम की सुई से,
जज़्बात सारे सिल दिए।
उम्मीदों के थोड़े सितारे,
आँचल पर जड़ दिए।
आरज़ू-ए-महफ़िल में,
पेश-ए-नज़र कर दिए।
गुनगुनाकर उस गज़ल को,
दामन में ख़्वाब भर लिए।
ऐ ग़ज़ल ! तूने अदा से,
कितने शायर फ़िदा कर लिए।
चाहत के रंगीन धागे,
आज मैंने बुन लिए…..

डॉ. कविता सिंह ‘प्रभा’


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