आओ फिर से दिया जलाएँ

Spread the love

आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ…

हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।…

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ…

—अटलबिहारी वाजपेयी

Website |  + posts

Spread the love

Leave a Comment

Recommended
चाहत के रंगीन धागे, आज फिर से बुन लिए।मोहब्बत की…
Cresta Posts Box by CP

Table of Contents

Index