मृत्यु का ही एक और नाम है जीवन-जीवन का नाम है मृत्यु विज्ञान भी मानता है कि जगत मे किसी भी पदार्थ का नाश नहीं होता। यदि ऐसा है तो जगत में नूतन कुछ भी नहीं हैं, और होगा भी नहीं। संस्कृतभाषा में मस्तिष्क के सब केंद्रों को इंद्रियाँ कहते हैं। ये इंद्रिया इन यंत्रोंको लेकर मन को अर्पित कर देती है। इसके बाद मन इन्हें बुद्धी के निकट लाता है। फिर बुद्धि इन्हें अपने सिंहासन पर विराज मान महिमाशाली आत्मा को प्रदान करती है। आखीर में आत्मा इन्हें देखती है और फिर आवश्यक आदेश देती है। तत्पश्चात, मन इन मस्तिष्क केंद्रों यानी इंद्रियोपर कर्म करता है और फिर इंद्रिया स्थूल शरीरपर कार्य करना आरंभ कर देती हैं। आत्मा इन सबकी वास्तविक अनुभव कर्ता, सृष्टा, द्रष्टा और सब कुछ है। तरंग जब उपरकी ओर उठती है, तो मानो जीवन है और फिर वह गिर जाती है तो मृत्यु है।
Table of Contents
ToggleSahitya Mitra
- Sahitya Mitrahttps://sahityamitra.in/author/sahityamitra/
- Sahitya Mitrahttps://sahityamitra.in/author/sahityamitra/
- Sahitya Mitrahttps://sahityamitra.in/author/sahityamitra/
- Sahitya Mitrahttps://sahityamitra.in/author/sahityamitra/